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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
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भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
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~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
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परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
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भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
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भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
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~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
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भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
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परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
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भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
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~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
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भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
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परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।
ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
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ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण जीवन के साथ एकत्व की अनुभूति, आन्तरिक रूप से भय और तनाव रहित होकर इश्वर के पास जाने में और पूर्ण रूप से दिव्य प्रेम में विश्राम करने में सहायक होती है। तुम्हारे जीवन में चाहे जो भी होता है, तुम सत्य के विशाल सागर के साथ एक हो।चाहे कोई भी व्यक्ति तुम्हारे साथ कितनी भी दुष्टता से व्यवहार करे, इश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम या तुम्हारे प्रति इश्वर के प्रेम को शाश्वत काल तक तुमसे कोई नहीं छीन सकता, क्योंकि इश्वर, और केवल इश्वर ही, तुम्हारा सच्चा धन है।
भ्रम (मोह) में पड़ा व्यक्ति अपने भ्रम को केवल विवेक से नहीं (उसका मन पहले ही वास्तविक दिखने वाली उन भ्रान्तियों से सम्मोहित है जिन्हें वह दूर करना चाहता है) बल्कि उसे इश्वर को अर्पित करके दूर कर सकता है। तब इश्वर अपने अनन्त दिव्य प्रेम के कारण, उसके पास ज्ञानी गुरु को भेजेंगे, उनकी मुक्त चेतना उसे उस दलदल से निकाल देगी, जिससे वह बचने की कोशिश कर रहा है।
~ स्वामी क्रियानन्द
भगवद्गीता का सार, परमहंस योगानन्द द्वारा कृत व्याख्या
हम सब अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं उसका उदेश्य केवल ख़ुशी और शांति पाना होता है।
परन्तु हम सबने यह अनुभव किया होगा कि हम कुछ भी प्राप्त कर लें अपने जीवन में पर एक संतोष हम नहीं पा पाते क्योंकि सर्वदा रहने वाली ख़ुशी, परिणाम होता है हमारी प्राथना और दैनिक ध्यान साधना का। हम ध्यान में जितना अधिक ईश्वर के साथ संपर्क कर पाते हैं उतना ही हम अपने आस-पास शांति का एक घेरा महसूस कर पाते हैं।
आइए इस ध्यान साधना में एक प्रयास करें उस दिव्य आनंद को पाने का, अपने ह्रदय कि रोशनी को ढूंढ़ने का। यह महसूस करें कि वह दिव्य ज्योति आपको हर तनाव से मुक्त कर रही है। और आपके पूरे शरीर को जगमगा रही है। यह रोशनी सब जगह फ़ैल रही है, सभी जीव जंतु इसका भाग बन गए हैं। यह रोशनी पूरे विश्व को स्वस्थ और आनन्दित कर रही है।